Tuesday, June 9, 2020

Lesson-3 परागण, निषेचन तथा भ्रूणकोष व् भ्रूण का परिवर्धन Pollination ,Fertilization and Development Of Endosperm and Embryo

Lesson-3

परागण, निषेचन तथा भ्रूणकोष व् भ्रूण का परिवर्धन

Pollination ,Fertilization and Development Of Endosperm and Embryo


परागण(Pollination)

परिभाषापुंकेसर के  परागकोष से परागकणों का अन्ड़प की वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण की क्रिया को परागण कहते हैं

परागकण स्थानांतरण के साधन (i)कीट (ii)वायु (iii)जल (iv) पक्षी (v) चमगादड़ (vi) घोंघा (vii)चीटियाँ आदि

परागण के प्रकार (A)स्व-परागण (B)पर-परागण

(1)      स्व-परागण=जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पादप के अन्य पुष्प की वर्तिकाग्र पर पहुचते हैं तो इस प्रकार के परागण को  स्वपरागण कहते हैं यह परागण दो प्रकार का हो सकता है

(i)स्वकयुग्मन(Autogamy) = एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुचना अर्थात स्वयं  के  परागकणों से परागित होना स्वकयुग्मन है उदाहरण मटर

(ii)सजातपुष्पी (Geitonogomy)= एक पुष्प के परागकण उसी पादप के अन्य पुष्प की वर्तिकाग्र पर पहुंचना सजातपुष्पी परागण है अर्थात यह एक ही पादप के दो अलग –अलग पुष्पों के बीच का परागण है उदाहरण,मक्का , ककड़ी

सजातपुष्पी परागण    आनुवंशिक दृष्टि से –  स्वपरागण

                               पारिस्थितिकी दृष्टि से— परपरागण 

स्वपरागण के लिए युक्तियाँ या अनुकूलन = यह वे तरीक़े या परिवर्तन हैं जिनके कारण स्वपरागण संभव हो पाता है यदि यह युक्तियाँ न हो तो स्वपरागण नहीं होगा

प्रमुख युक्तियाँ (i) उभयलिंगता(Bisexuality) =स्वपरागित पादप उभयलिंगी या द्विलिंगी होते हैं उदाहरण मटर

             (ii)समकालपक्वता(Homogamy)=  इन पोधों के पुष्पों के पुमंग या जायांग एक ही समय में एक साथ परिपक्व होते हैं और सही समय पर परागकण वर्तिकाग्र पर पहुच जाते हैं  उदाहरण गुल अब्बास(Mirabilis), सदाबहार(Catharanthus)

(iii) अनुन्मील्यता(Cleistogamy)= यह स्वपरागण के लिए  ऐसा उपाय  है जिसमें की पुष्प खुलते ही नहीं हैं इस तरह दूसरे पुष्प के परागकण अन्दर वर्तिकाग्र पर पहुँच ही नहीं पाते और और पर परागण की संभावना समाप्त हो जाती है  केवल स्वपरागण  ही हो पाता है .उदाहरण वायोला , कन्कोआ (Commelina)

(B)परपरागण (Cross-Pollination)= एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पोधे के पुष्प  की वर्तिकाग्र पर पहुचते हैं तो इस प्रकार के परागण को  पर-परागण कहते हैं

इसे सजात (Xenogamy)परागण भी कहते हैं

पर परागण की युक्तियाँ एवं अनुकूलन (Contrivances or Adaptation for Cross-Pollination)

(i)स्वबंध्यता(Self Sterility)

(ii)एक लिंगता(Unisexuality or Dicliny)

(iii) भिन्नकालपक्वता (Dichogamy)

(iv)अवरुद्धपरागणता या हरकोगेमी(Herkogamy)

(v) विषमवर्तिकात्व

       

(i)स्वबंध्यता(Self Sterility)=  यह स्वपरागण को रोकने की ऐसा उपाय  है जिसमें की एक पुष्प के स्वयं के परागकण स्वयं की वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं होते  अर्थात वे स्वयं के लिए बंध्य होते हैं ऐसी स्थिति स्वबंध्यता कहलाती है उदाहरण राखी बेल(Passiflora), अंगूर(Vitis) पेटूनिया  .

(ii) एकलिंगता(Uni Sexuality or Dicliny)= किसी पादप के समस्त पुष्प एक ही लिंग के हो तो इस स्थिति को एकलिंगता कहते हैं यह स्थिति स्वपरागण को रोकती है किसी पादप के समस्त पुष्प एक ही होने पर उसमें केवल पर–परागण ही हो सकता है कई पोधों जैसे की लोकी तुरई आदि में एक ही पादप पर दोनों प्रकार के एक लिंगी पुष्प लगते. इस कारण इन पादपों में सजातपुष्पी परागण हो सकता है जिसको स्वपरागण का प्रकार मानते हैं .

(iii) भिन्नकालपक्वता(Dichogamy)= पोधों में पुमंग व जायांग भिन्न भिन्न काल (समय) पर परिपक्व होते हैं

भिन्नकालपक्वता के प्रकार

(क) पुपूर्वता(Protandry)    (ख)स्त्रीपूर्वता(Protogyny)

(क)पुपूर्वता(Protandry)= भिन्नकालपक्वता की वह स्थिति जब परागकोष वर्तिकाग्र से पूर्व  परिपक्व हो जाता है इसे पुपूर्वता कहते हैं इस कारण स्वपरागण नहीं हो पाता उदाहरण गुडहल,कपास,सूरजमुखी

 (ख)स्त्रीपूर्वता(Protogyny) = भिन्नकालपक्वता की वह स्थिति जब वर्तिकाग्र परागकोष से पूर्व  परिपक्व हो जाता है इसे पुपूर्वता कहते हैं इस कारण स्वपरागण नहीं हो पाता उदाहरण ब्रेसिकेसी और        रोजेसी के अधिकतर पादप ,चंपा ,बरगद आदि

 (iv)अवरुद्धपरागणता या हरकोगेमी(Herkogamy)= वे  उपाय जिसमे की परागण को रोकने  के लिए वर्तिकाग्र एवं परागकोष के मध्य किसी प्रकार का संरचनात्मक रूकावट(अवरोध)हो जाता है इस कारण स्वपरागण नहीं हो पाता उदाहरण केरियोफिलेसी कुल के पोधे ,कलिहारी

 (v) विषमवर्तिकात्व=Primula दो प्रकार के पुष्प होते हैं (a)लम्बी वर्तिका और छोटे पुंकेसर वाले  (b) छोटे वर्तिका और लम्बे पुंकेसर वाले 


इस  स्थिति से  स्वपरागण नहीं हो पाता क्योंकि लम्बी वर्तिका लम्बे पुंकेसर के परागकण से तथा छोटी वर्तिका छोटे पुंकेसर के परागकण से ही परागित हो सकते हैं

 


 1.     पर परागण की विधियाँ(Methods of cross Pollination )

   पर परागण बाह्य साधनों द्वारा होता है अत: यह परागण बाह्य साधनों पर निर्भर करता है साधन वह  माध्यम हैं जिनके द्वारा परागकण वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं  यह दो प्रकार के होते हैं (i)अजैविक (ii)जैविक

(i)अजैविक:-उदाहरण -- वायु ,जल    (ii)जैविक:-उदाहरण—कीट,पक्षी,जंतु 

पर परागण के प्रकार  प्रकार का आधार= बाह्य साधन

1        वायु परागण (Anemophily)

2        जल परागण(Hydrophily)

3        कीट परागण(Entomophily)

4        पक्षी परागण (Ornithophily)

5        चमगादड द्वारा (Cheiropterophily)

1 वायु परागण (Anemophily) = पर परागण  का वह प्रकार जिसमें की पराग कण  वायु द्वारा स्थानांतरित होते हैं अर्थात स्थानान्तरण का बाह्य माध्यम(साधन) वायु होता है  वायु परागण कहलाता है

वायु परागित पुष्पों की विशेषताएं =(i)परागकण छोटे हल्के चिकने एवं शुष्क होते हैं (ii)  परागकण उत्पादन संख्या में अधिक होता है (iii) वर्तिकाग्र परागण के अनुकूल उदाहरण 1  =घास –वर्तिकाग्र रोमिल या पक्षाभी ,उदाहरणता है 2 typha brush जैसा वर्तिकाग्र

2 जल परागण(Hydrophily)= पर परागण  का वह प्रकार जिसमें की पराग कण  जल द्वारा स्थानांतरित होते हैं अर्थात स्थानान्तरण का बाह्य माध्यम(साधन) जल होता है  जल परागण कहलाता है सभी जलीय पादप जल परागित नहीं होते.

वायु परागित जलीय पादप :- पोटामोज़ीटोंन(Potamogeton)

कीट परागित जलीय पादप :- निम्फिया (Nymphaea)

जल परागण के प्रकार

आधार = जल परागण का स्थान

(i) अधोजल परागण(Hyphydrophily) अधो=नीचे अर्थात वह जल परागण जो की जल की सतह के नीचे होता है उदाहरण जल निमग्न पोधे(जल में डूबे हुए पोधे) जैसे की

नाजास ,सिरेटोफिल्लम,जोस्टेरा

(ii).अधिजल परागण=(Ephydrophily) अधि=बाहर या ऊपर अर्थात वह जल  परागण जो की जल की सतह के ऊपर  होता है उदाहरण=वेलिसनेरिया

 3.कीट परागण (Entomophily)= पर परागण  का वह प्रकार जिसमें की पराग कण  कीटों द्वारा स्थानांतरित होते हैं अर्थात स्थानान्तरण का बाह्य माध्यम(साधन) कीट होते है  वायु परागण कहलाता है

वायु परागण करने वाले कीट :- मधुमक्खियाँ , पतंगे ,टाटिया,बीटल . यह माना जाता है की 80%  प्रतिशत कीट परागण मधुमक्खियों द्वारा होता है

कीट परागित पुष्पों की विशेषताएँ :--(i) अधिकतर पुष्प रंगीन  चमकदार होते हैं (ii) मकरन्द युक्त होते हैं (iii) पुष्पों में गंध होती है उदाहरण :-सरसों , साल्विया (तुखमलंगा),आर्किड्स आक आदि

4.पक्षी परागण(Ornithophily)= पर परागण  का वह प्रकार जिसमें की पराग कण  पक्षियों द्वारा स्थानांतरित होते हैं अर्थात स्थानान्तरण का बाह्य माध्यम(साधन) पक्षी होते है  पक्षी परागण कहलाता है

अधिकाँश उष्ण कटिबंधीय पोधों में पक्षियों द्वारा परागण होता है

विभिन्न आकृतियों के पुष्प (i) नलिकाकार  उदाहरण तम्बाकू  (ii) प्यालेनुमा  उदाहरण:- Bottle Brush (iii) कुम्भाकार उदाहरण :-ऐरीकेसी कुल के पोधे

ये सभी पोधों के पुष्प चमकदार आकर्षक एवं मकरंद युक्त होते है यह मकरंद पक्षियों के लिए लालच का कार्य करता है पक्षी मकरंद के लालच में आकर्षित होते हैं और पुष्प के परागकण पक्षियों की  चोंच और  शरीर पर चिपककर और दुसरे पुष्प पर पहुँच जाते हैं

 कुछ परागण करने वाले प्रमुख  पक्षियों के उदाहरण = गुंजन पक्षी(Humming birds) ,शकरखोरा(Sun Bird) , नेक्टिरिना

कुछ पक्षी परागित पुष्प = सेमल(Bombax),बिग्नोनिया,पलाश(Butea), रक्तमदार(Erythrina)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


Wednesday, May 6, 2020

Lesson-2 नर एवं मादा युगमकोदभिद संरचना एवं विकास

अध्याय -2

नर व् मादा युग्मकोदभिद- संरचना एवं विकास

Male and Female Gametophyte –Structure and Developmen

पुष्प= *आवृतबीजी पादपों का जनन अंग है

      *लैंगिक जनन की सभी प्रक्रियाओं का स्थान है

      *रूपांतरित प्ररोह है

      *यह बीजाणुपर्णधारी प्ररोह भी कहा जाता है

पुष्प के भाग चार प्रमुख  भाग जो कि  चक्रों में व्यवस्थित (1) बाह्य दलपुंज एक सदस्य बाह्य- दल  (ii) दलपुंज एक सदस्य- दल    = सहायक चक्र

                                                 (iii) पुमंग एक सदस्य- पुंकेसर           (iv) जायांग एक सदस्य -अन्ड़प     = जनन चक्र      

नर व् मादा युग्मकोदभिद-संरचना एवं विकास (Structure and develolpment of male gametophyte)

आवृतबीजी पादपों में नर जननांग – पुंकेसर(Stamen) अन्य नाम लघुबीजाणुपर्ण(Microsporophyll)

पुंकेसर के भाग = तीन (i)पुतन्तु(Filament)  (ii)योजी(connective) (iii) परागकोष(Pollen Sac)

पुतन्तु(Filament)

      *पुंकेसर का वृन्त्नुमा भाग

      *शीर्ष पर परागकोष

      *परागकोष में दो पालियां जो की योजी द्वारा जुड़ी हुई

      *प्रत्येक पालि(lobe) दो प्रकोष्ठ में बटी हुई

      *इन प्रकोष्ठ को परागकोष(Pollen Sac) या परागपुट या लघुबीजाणुधानी(Microsporangium) भी कहते हैं

द्वी पालि परागकोष में लघुबीजाणुधानियों की संख्या = 4            Malvaceae कुल(family) में परागकोष एक पालि युक्त  अत: इनमें लघुबीजाणुधानियों की संख्या =2

      *लघुबीजाणुधानी में लघुबीजाणु अथवा परागकणों(pollen grains) का विकास

परागकोष का जब विकास हो रहा होता है तब प्रारंभ में यह अविभेदित तथा समरूपी कोशिकाओं का समूह होता है यह चारों और से बाह्यत्वचा से घिरा रहता है .  इनमें कई संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं इससे चार परागपुट का निर्माण होता है . परागपुट की अधस्त्वचा कोशिकाएं अन्य कोशिकाओं की तुलना में आकर में बढ़ी और सघन जीवद्रव्य वाली हो जाती हैं यह कोशिकाएं प्रपसू कोशिकाएं(Archesporial cells) कहलाती हैं  है . हर एक प्रपसू कोशिका में एक परिनत विभाजन होता है जिस से दो कोशिकाएं बनती हैं   परागकोष का परिवर्धन सबीजाणुधानीय(eusporangiate) प्रकार का होता है . इस प्रकार के परिवर्धन में एक से अधिक बीजाणुधानीय प्रारम्भिकाओं से बीजाणुधानी या परागपुट का परिवर्धन होता है .

प्रपसू कोशिका में परिनत विभाजन से बनी दो कोशिकाएं

(i)प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary parietal cell)     निर्माण             परागकोष भित्ति

(ii)प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका(Primary sporogenous cell)    निर्माण       लघुबीजाणु मात्र कोशिका(Microspore mother cell)

 पराग कोष परिवर्धन से  यह दो स्पष्ट भागों बंट जाता है

  (1 )परागकोष भित्ति (2)बीजाणुजन –कोशिकाएं

परागकोष भित्ति (Anther Wall)

निर्माण-प्राथमिक भित्तीय कोशिका से

स्तर-चार

परिधि(बाहर)से केन्द्र की और (i)प्रथम स्तर-बाह्यत्वचा (ii)द्वितीय स्तर-अन्तस्थिसियम (III)तृतीय स्तर-मध्य स्तर (iv)चोथा स्तर-पोषूतक  

·         (i)प्रथम स्तर-बाह्यत्वचा: -सबसे बाहरी स्तर ,एकल स्तर कोशिकाएं स्पर्श रेखीय दिशा में दीर्घित और चपटी

·         (ii)द्वितीय स्तर-अन्तस्थिसियम-बाह्यत्वचा स्तर के नीचे ,एकल कोशिकाओं का स्तर  ,कोशिकाएं मोटी तथा त्रिज्या पर दीर्घित ,जमाव –एल्फा सेल्यूलोस का इससे U आकार की  रेशेदार पत्तियों का निर्माण ,कोशिकाएं आद्र्ताग्राही प्रकृति की ,शुष्क होने पर तनाव जिससे कि परागकोष का स्फुटन

·         (III)तृतीय स्तर-मध्य स्तर- अन्तस्थिसियम के नीचे परागकोष भित्ति का तीसरा स्तर , कोशिकाओं की तीन परतों द्वारा निर्मित , कोशिकाएं पतली भित्ति युक्त और अल्पकालिक  

·         (iv)चोथा स्तर-पोषूतक (टेपीटम)Tapetum –परागकोष भित्ति का सबसे आंतरिक स्तर ,एकल कोशिकाओं का बना हुआ स्तर ,लघुबीजाणु की चतुष्क अवस्था तक पूर्ण विकसित ,इस स्तर की कोशिकाओं का कोशिका द्रव्य सघन व केन्द्रक स्पष्ट ,परिपक्व अवस्था में कोशिकाएं बहुकेंद्रकी व बहुगुणित,कोशिकाओं में वसीय प्रकृति की संरचनाएं-प्रोयुबिस काय (proubisch bodies)

प्रोयुबिस कॉय का परिवर्तन ---युबिस कॉय में स्पोरोपोलेनिन पदार्थ के जमा होने के कारण

युबिस कॉय का कार्य –पराग कणों के बाह्यचोल के निर्माण में सहयोग

 

आवृतबीजी पादपों में  टेपीटम के प्रकार (i)अमीबीय(amoboed) (ii) स्त्रावी या ग्रंथिल(secretary or glandular)

द्वीबीजपत्री पादपों(Dicot plants) में  टेपीटम का प्रकार –स्त्रावी

टेपीटम के कार्य = परागकणों के परिवर्धन के समय पोषण प्रदान करना

यदि टेपीटम का परागकणों के विकास के पहले ही  ह्यास हो जाए तो परागकण बंध्य(sterile) और रुद्ध वृद्धि वाले हो जाती हैं   

(2) बीजाणुजन कोशिकाएं(Sporogenous cells) इन पर परागकोष भित्ति का आवरण , इनके द्वारा लघु बीजाणु मात्र कोशिकाओं(Microspore mother cells) का निर्माण , अर्द्ध सूत्री विभाजन द्वारा चार लघुबीजाणु(Microspore) का निर्माण

 लघुबीजाणु जनन(MicroSporogenesis)

   परिभाषा परागकोष की लघुबीजाणुधानी(Microsporangium)में उपस्थित द्वीगुणित(Diploid) लघुबीजाणुमातृ कोशिका(Microspore mother cell)में अर्द्धसूत्री विभाजन से एक कोशिका से चार अगुणित लघुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया लघुबीजाणुजनन(Microsporogenesis) कहलाती है .

  प्राथमिक बीजाणुजन कोशिकाएं(Primary sporogenous cells)  - लघुबीजाणुमातृ कोशिका /पराग मातृ कोशिका(2n)4 लघुबीजाणु(Microspore) या परागकण(n)

      परिभाषा चतुष्क(Tetrad) लघुबीजाणु जनन से बने 4 लघु बीजाणु जो की एक चतुष्क(Tetrad) के रूप में व्यवस्थित रहते हैं

लघुबीजाणुओं की व्यवस्था के आधार पर  चतुष्क पांच प्रकार के होते हैं  

1.      चतुष्कफलकीय(Tetrahedral)

2.      सम दविपार्श्विक (Isobilateral)

3.      क्रासित(Decusaate)

4.      T-आकार( T Shaped)

5.      रैखिक (Linear)

चतुष्कफलकीय(Tetrahedral) लघुबीजाणु 3 आगे चोथा पीछे  आगे वाले 3 दिखाई देते हैं पीछे वाला दिखता नहीं उदाहरण द्वीबीजपत्री
सम दविपार्श्विक (Isobilateral) चारों लघुबीजाणु एक ही तल पर इस कारण चारों दिखाई देते हैं उदाहरण एक्बीजपत्री पोधे
क्रासित(Decusaate) लघुबीजाणु एक दुसरे से समकोण पर स्थित होते हैं इस स्थिति में ऊपर के दो लघुबीजाणु (एक युग्म) तो दिखाई देता है लेकिन नीचे के दो लघु बीजाणु ( युग्म) का केवल एक लघुबीजाणु तो दिखाई देता है लेकिन दूसरा उसके नीचे होने के कारण दिखाई नहीं देता .उदाहरण मेग्नोलिया
T-आकार( T Shaped)  इस व्यवस्था में ऊपर के दो अनुप्रस्थ(आड़े) तथा नीचे के दो एक दुसरे से लम्बवत होते हैं यह व्यवस्था अंग्रेजी के T अक्षर की तरह दिखाई देती है उदाहरण      aristolochea
रैखिक(Linear) सभी चारों लघुबीजाणु लम्बवत(खड़े) रैखिक क्रम में व्यवस्थित होते हैं उदाहरण हैलोफिला(Halophylla)

लघुबीजाणुओं के बीच callose नामक पदार्थ जो एक polysaccharide है  की भित्ति होती है  इस भित्ति का विघटन callase नामक एंजाइम करता इससे चतुष्क से लघुबीजाणु मुक्त हो जाते हैं   और इनका आकार गोल हो जाता है . इस अवस्था मैं अब इन्हें (लघुबीजाणु) को परागकण कहते हैं . परागकण चतुष्क से मुक्त होने के बाद लघुबीजाणुधानी में ही बिखरे रहते हैं

 परागपिण्ड  या पोलिनियम (Pollinium) = कुछ पादपों में परागकण(pollengrains) के  आपस में मिलने से  बनने वाली एक विशिष्ट संरचना. उदाहरण आक (calotropis) एवं कुछ आर्किड्स .  

संयुक्त परागकण (Compound Pollen  grains ) = अनेक परागकण चतुष्क के आपस में मिलने से बनने वाली संरचना 

परिभाषा   बहुबीजाणुता =ऐसी स्थिति जब एक चतुष्क में चार से अधिक लघुबीजाणु उपस्थित हो बहुबीजाणुता (Polyspory) कहलाती है 

    परिभाषा परागकोष स्फुटन (Anther dehiscence)= परिपक्व परागकोष की भित्ति के फटने की प्रक्रिया परागकोष स्फुटन कहलाती है .स्फुटन में अन्तस्थिसियम की ओष्ठ कोशिकाओं (Stomium) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है

परागकोष स्फुटन की विधियाँ
1.      अनुप्रस्थ स्फुटन
2.      लम्बवत स्फुटन
3.      छिद्रमय स्फुटन
4.      कपाटीय
अनुप्रस्थ स्फुटन =परागकोष की पालियां का स्फुटन परागकोष अक्ष  के अनुप्रस्थ(आड़ा) होता है उदाहरण तुलसी (Ocimium sanctum)
लम्बवत स्फुटन = परागकोष की पालियां का स्फुटन परागकोष अक्ष के लम्बवत (खड़ा) होता है उदाहरण धतुरा (Dhatura) कपास (Gossypium)
छिद्रमय स्फुटन = परागकोष के शीर्ष पर एक या दो छिद्र बनकर स्फुटन होता है उदाहरण मकोय (Solanum nigrum)
 
कपाटीय = परागकोष में एक या दो या अधिक कपाट बनकर स्फुटन होता है उदाहरण बारबेरी (barberi)

नरयुग्मकोदभिद (Male Gametophyte)

परिभाषा नरयुग्मकोदभिद=अंकुरित परागकणों को नरयुग्मकोदभिद कहते हैं अर्थात यह परागकणों से बनता है .

नरयुग्मकोदभिद पीढ़ी की  प्रथम कोशिका लघुबीजाणु या परागकण होती है यह कोशिका युग्मकजनन (Gametogenesis) की प्रक्रिया से नरयुग्मकोदभिद बनाती है

·         परागकण का केन्द्रक विभाजित होकर दो कोशिकाएं बनाता है .(1) छोटी जननं कोशिका(n) (2) बड़ी कायिक कोशिका

·         जनन कोशिका समसूत्री विभाजन द्वारा दो नर युग्मक(n) बनाती है

परागकण की संरचना

           (i)परागकण एक्कोशिक ,एककेन्द्रकी,अगुणित(n) होता है यह अधिकतर गोलाकार होता  है

   (ii)इसका केन्द्रक और सघन कोशिकाद्रव्य दोनों दो स्पष्ट भित्तियों द्वारा घिरे रहते हैं  (1) बाह्य चोल (Exine) बाहरी भित्ति  (2) अंत:चोल (Intine) आंतरिक भित्ति

बाह्य चोल बाहरी भित्ति = (ii)मोटा ,खुरदुरा  होता है .

(iii)इस पर अलंकरण अर्थात कोई आकर्तियाँ बनी हुई होती है जैसे कि जालिकावत ,धारीदार ,और कांटेदार आदि प्रकार की हो सकती है .

(iv)बाह्यचोल का निर्माण स्पोरोपोलेनिन नामक स्थायी प्रकृति के  रासायनिक पदार्थ से होता है

(v) स्पोरोपोलेनिन को  भोतिक अथवा जैविक रूप से आसानी से  अपघटित(तोड़ा) नहीं किया जा

(vi) इस तरह स्पोरोपोलेनिन परागकण को विभिन्न भोतिक और रासायनिक हानिकारक कारणों के प्रति प्रतिरोध  प्रदान करता है. यह पृथ्वी पर ज्ञात कार्बनिक पदार्थों में से सबसे अधिक प्रतिरोधी  है .

(vii) स्पोरोपोलेनिन का कार्य= परागकण को विपरीत  भोतिक रासायनिक परिस्थितियों में बचाए रखना

(viii)बाहरी भित्ति पर छोटी-छोटी छिद्रनुमा संरचनाएँ पायी जाती है इन्हें जनन छिद्र(Germ Pore) कहते हैं

(ix)जनन छिद्र= संख्या अधिकतर 1 या 3 होती है  ,इसका कार्य  परागकण अंकुरण में सहायता करना है .

(x)अंत:चोल(Intine) आंतरिक भित्ति = पतला,कोमल और झिल्लीनुमा .यह पेक्टिन एवम् सेलुलोज़ का बना हुआ होता है .

परिभाषा पोलन किट (Pollen kit) कीट परागित पुष्पों की सतह पर पायी जाने वाली तेलीय और चिपचिपी परत  जो की परागकणों को विशेष रंग , चिपचिपापन और विशिष्ट गंध प्रदान करती है पोलन किट कहलाती .

·         यह बाह्य चोल (Exine) बाहरी भित्ति  पर होती है

·         यह केरोटीनॉइड और लिपिड्स की होती है .

·         इसके निर्माण के लिए आवश्यक पदार्थों का संलेषण टेपीटम कोशिकाओं द्वारा होता है

·         हालांकि पोलन किट का कार्य निश्चित नहीं है लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार इसके निम्न कार्य हो सकते हैं

Q पोलन किट के कार्य

(i)कीटों को आकर्षित करने में सहायता करना

(ii)चिपचिपे स्वभाव के कारण कीटों के शरीर से चिपकने में सहायता करना

(iii)परागकणों की पराबैंगनी किरणों से रक्षा करना

परिभाषा  पराग एलर्जी (Pollen Allergy) वह एलर्जी जो कि  पराग कणों और टेपीटम कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न प्रोटीन(allergen) के कारण होती है .

1         यह प्रोटीन बाह्यचोल की गुहिकाओं और रिक्त स्थानों में भरे रहते हैं .परागकण के नमी के संपर्क में आने से (प्रोटीन) allergen अपने स्थलों से बाहर आ जाते हैं और वातावरण में हवा के साथ फैलकर मनुष्य में बुखार तथा दमा श्वसन संबंधी allergy रोग उत्पन्न करते हैं .

2         कुछ प्रोटीन पराग स्त्रीकेसर पारस्परिक क्रिया उत्पन्न निषेचित होने वाली वर्तिकाग्र को पहचानने में मदद करते हैं

 

 

नर युग्मकोदभिद का परिवर्धन (Development of male gametophyte

नर युग्मकोदभिद का परिवर्धन शुरू करने वाली प्रथम कोशिका लघुबीजाणु होती है . इसका जीव द्रव्य गाढ़ा तथा केन्द्रक स्पष्ट होता है . यह अगुणित(n) होती है . चतुष्क(Tetrad) [i]से अलग  होने के बाद लघुबीजाणु कोशिका का आकार तेज़ी से बढ़ता है . इसका कोशिकाद्रव्य पतली परिधीय झिल्ली के रूप में दिखाई देने लगता है और कई रसधानियाँ बन जाती हैं . नर युग्मकोदभिद के  विकास की अवस्थाएँ दो भागो में संपन्न होती हैं (1) परागण के पहले (2) परागण के बाद

परागण के पहले = लघुबीजाणु(n) का केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा दो प्रकार के केन्द्रक में विभाजित हो जाता है (i)एक बड़ा कायिक केन्द्रक(ii) एक छोटा जनन केन्द्रक

इन दोनों केन्द्रकों के बीच भित्ति बन जाने से यह दो प्रकार की कोशिकाएं बन जाती है (i) एक बड़ी कायिक कोशिका (ii)एक छोटी जनन कोशिका  

इस तरह यह द्विकोशिक अवस्था परागण से पहले बंटी है और इसी अवस्था में अधिकतर पादपों में परागण(Pollination) क्रिया पूरी होती है . परागकण पराग्कोषों से अलग होकर वर्तिकाग्र तक पहुंचतें हैं शुरू में जनन कोशिका परागकण की भित्ति से जुड़ी रहती है लेकिन अपनी स्वयं की  भित्ति का निर्माण पूरा कर लेने के बाद परागकण भित्ति से अलग हो जाती है . और कायिक केन्द्रक की और बढ़ने लगती है .परागकण की भित्ति से पृथक होने के बाद जनन कोशिका का आकार बदल जाता है यह अब चपटा हो जाता है जो की बाद में जाकर मसुराकार(Lenticular) दीर्घ वृतज ,कृतिरूपी या तर्कुरूपी(Spindle Shaped) हो सकता है .

कायिक कोशिका(Vegetative Cell):- जैसा की हमने पढ़ा कायिक कोशिका का आकार बढ़ा होता है . कायिक कोशिका के केन्द्रक का आकार बदलता है यह पहले गोलाकार और बाद में अनियमित आकार का हो जाता है इस कोशिका के विभिन्न कोशिकांगों के आकार और संख्या बढ़ जाते हैं .इसी समय इनमें RNA  और प्रोटीन भी उचित मात्रा होते हैं . इसी समय रसधानियाँ भी विलुप्त हो जाती हैं ऐसा माना जाता है की कायिक कोशिका अंकुरण के समय परागनलिका का निर्माण करती है . हालांकि यह बात अभी सुनिश्चित नहीं है . कुछ समय बाद  कायिक कोशिका नष्ट हो जाती है

जनन कोशिका (Generative cell):-  यह कोशिका छोटी होती है शुरू में इस कोशिका का आकार लेंस की आकृति का होता है लेकिन परागकोष की भित्ति से अलग होने के बाद  इस कोशिका का आकार

गोलाकार हो जाता है . और विकास की कई प्रवस्थाओं में इस कोशिका की आकृति बदल जाती है अब यह लम्बी होकर कृमिरुपी दिखाई देती है इस कोशिका यह आकार इसकी परागनली में गति को आसान बना देता है. जनन कोशिका में सभी कोशिकांग पाए जाते हैं लेकिन कोशिका द्रव्य बहुत कम मात्रा में होता है

कायिक कोशिका और जनन कोशिकाओं के केन्द्रकों में DNA  की मात्रा तो समान होती है लेकिन कोशिका द्रव्य में RNA  की मात्रा कोशिका द्रव्य की मात्रा के अनुसार होती है कोशिका द्रव्य अधिक की स्थिति में RNA  अधिक और कम होने की स्थिति में RNA  की मात्रा कम होती . कायिक कोशिका में कोशिका द्रव्य अधिक होने के कारण उसमें RNA की मात्रा जनन कोशिका से अधिक होती है

नर युग्मकों का निर्माण(formation of male gametes)

  नर युग्मकों का निर्माण जनन कोशिका से होता है युग्मक निर्माण अधिकांश पादपों में परागकण अंकुरण के समय बनी परागनलिका  में होता है . परन्तु कुछ में यह परागकण अंकुरण के पहले हो जाता है उदाहरण कुल्फा (Purtulaca) और  बन्दर बाटी (Holoptela)

परागकण के अंकुरण से बनी हुई परागनलिका वर्तिका में नीचे की और वृद्धि करती है उसी समय जनन कोशिका परागकण से परागनलिका( जनन नलिका ) में आ जाती है और यहाँ इसमें  सूत्री विभाजन( Mitotic Divison) होता है और इस  विभाजन के फलस्वरूप यह दो अगुणित (n) कोशिकाएं बन जाती है .यह दो अगुणित कोशिकाएं नर युग्मकों (Male gametes)  के रूप में कार्य करती है . यह दोनों नर युग्मक रुपी कोशिकाएं धीरे-धीरे पराग नलिका में आगे बढ़ते हुए बीजांड में प्रवेश करती है .

प्रत्येक नर युग्मक

*एक कोशिकीय   *अचल(nonmotile)  *अकशाभिक(nonflageelate)  *अगुणित (Haploid)  *एककेंद्रकी(Mononucleate)   होता है

 अधिकांश एन्जिओस्पेर्ममें में  नर युग्मक का निर्माण परागनलिका में ही होता है .जैसे लिलियम , निमोफिला

मादा युग्मकोदभिद की संरचना एवं परिवर्धन(Structure and development of female hgametophyte)

अन्ड़प अथवा गुरुबीजाणुपर्ण(Carpel or Megasporophyll)

आवृतबीजी पादपों में मादा जननांग जायांग (Gyanoecium) कहलाता है . जायांग एक से अधिक अन्ड़प(Carpel) से मिलकर बनता है अन्ड़प बीजांड धारण करने वाली रूपांतरित पर्ण है इसलिए इसे गुरुबीजाणु पर्ण(Megasporophyll) भी कहते हैं अन्ड़प की दो स्थितियां

वियुक्ताअन्ड़प(Apocarpous) अन्ड़प अलग-अलग

संयुक्त या युक्तान्ड़प (Syncarpous)= अन्ड़प जुड़े हुए

अन्ड़प एक फ्लास्कनुमा संरचना अन्ड़प के तीन भाग

(I)                 वर्तिकाग्र Stigma (ii) वर्तिका Style (iii) अंडाशय Ovary

अण्डाशय= यह जायांग का आधारीय भाग है जो की फूला हुआ होता है

 इसमें अंडाकार  संरचनाएं होती हैं जिन्हें बीजांड(Ovule) कहते हैं

बीजाण्ड को गुरुबीजाणुधानी (Megasporongium) भी कहा जाता है

बीजाण्डसन(Placenta)  = अंडाशय की भीतरी भित्ति  पर स्थान जहां बीजाण्ड जुड़ा रहता है

बीजाण्डवृन्त(Funicle) =वृन्तनुमा संरचना  जिसके द्वारा बीजाण्ड बीजाण्डसन से जुड़ा रहता है.

नाभिका(Hilum) = बीजाण्ड पर वह स्थान जहाँ बीजाण्डवृन्त जुड़ा रहता है

रैफी(Raphe) = नाभिका के स्थान पर उभारनुमा संरचना

(ii) वर्तिका Style=अंडाशय के ऊपर का नलिकाकार भाग है इसी भाग से परागनलिका को रास्ता मिलता है 

(i)वर्तिकाग्र Stigma= यह वर्तिका का शीर्ष भाग है इसी स्थान पर परागण के समय  परागकणों को ग्रहण किया जाता है

 

बीजाण्ड की संरचना(Structure of ovule)

आवृतबीजी पादपों में बीजाण्ड की संरचना जटिल होती है

आकृति=लगभग गोलाकार

(1)बीजाण्डकाय(Nucellus)=बीजाण्ड का शरीर अर्थात मुख्य भाग ,यह मृदुत्कीय कोशिकाओं का बना हुआ

(2)अध्यावरण(Integument)=बीजाण्डकाय  को चारो और से घेरने वाला एक या द्विस्तरीय आवरण (i) बाह्य अध्यावरण(Outer Integument) यह बाहरी आवरण है       (ii) अंत: अध्यावरण (Inner Integument) यह अन्दर की और का आवरण है

(3)बीजाण्ड द्वार(Micropyle) =

(4)निभाग(Chalaza)=

(5)भ्रूण कोष(Embryo sac)=

   (a)अंड समुच्य   (i) 1 अंड कोशिका (Egg Cell) (ii)  2 सहायक कोशिकाएं(Synergids)   

    

     (b)केन्द्रीय कोशिका (Central Cell) बीच में   दो अगुणित ध्रुवीय केन्द-- द्वीगुणित द्वीतीयक केन्द्रक(2n)

(c)प्रतिमुखी कोशिकाएं (Antipoda)  l Cell  विपरीत ध्रूव  की और 

  बीजाण्ड के प्रकार( Ovule)

  आधार =बीजाण्डद्वार एवम निभाग की पारस्परिक स्थिति

(1)ऋजु बीजाण्ड(Orthotropous Ovule)

स्थिति बीजाण्डद्वार ,निभाग,एवं बीजाण्डवृंत एक सीधी रेखा में

इस प्रकार का बीजाण्ड एक खड़ी सीधी रेखा में अर्थात उदग्र स्थिति में   

उदाहरण =अधिकाँश जिम्नोस्पेर्म के बीजाण्ड , पालीगोनेसी(polygonaceae),पाईपेरेसी(piperacea)

(2)प्रतीप बीजाण्ड(Antropous Ovule)  प्रतीप अर्थात उल्टा 

स्थिति बीजाण्डद्वार नाभिका(Hylem)के समीप आ जाता है

कारण-- बीजांड के 1800 पर घूमने के कारण  उल्टा(प्रतीप) हो जाता है

उदाहरण = आवृतबीजी पादपों के 82% कुलों में इस प्रकार का बीजाण्ड पाया जाता है .

(3)वक्र बीजाण्ड(Campylotropous Ovule)

स्थिति निभाग बीजाण्ड वृंत के समकोण पर

      बीजाण्डद्वार भी बीजाण्डवृंत के निकट

कारण—बीजाण्ड में वक्रता के कारण

बीजाण्डका्य एवं भ्रूणकोष दोनों घोड़े की नाल की भांति मुड़ जाता है  

उदाहरण=क्रुसिफेरी(Crusifereae),लेग्युमीनेसी(leguminaceae)

(4)अनुप्रस्थ बीजाण्ड(Amphitropous or Transverse Ovule)

स्थिति बीजांडका्य, बीजाण्डद्वार तथा निभाग बीजाण्डवृन्त के साथ समकोण पर स्थित

कारण=बीजाण्ड में वक्रता

परिणाम= भ्रूणकोष मुड़ जाता है

उदाहरण = एलिस्मेसी(Alismaceae), ब्युटोमेसी(Butosmaceae)

(5) अर्द्धप्रतीप बीजाण्ड(Hemianatrupous)

स्थिति बीजाण्डद्वार एवं निभाग एक क्षितिज रेखा में एवं बीजांडवृन्त इनके समकोण में

उदाहरण = रेननकुलेसी(Renunculaceae),प्रिमुमुलेसी(Primulaceae) कुल के पादप

(6)कुंडलित बीजाण्ड(Circinotropous Ovule)

स्थिति पूरा बीजाण्ड 3600 के कोण पर  

कारण= बीजाण्डवृन्त अत्यधिक लम्बा होने और पूरी तरह से घूम जाने के कारण

परिणाम बीजाण्डवृंत बीजाण्ड को चारों और से घेरे रहता है

उदाहरण प्लमबेजिनेसी (Plumbejinaceae) तथा केक्टेसी(Cactaceae)

 गुरुबीजाणुजनन (Megasporogensis)

परिभाषा गुरुबीजाणु मातृकोशिका द्वारा गुरुबीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया गुरुबीजाणुजनन कहलाती है   

प्रपसू आरम्भक(Archesporial initial )बीजाण्डकाय की अधस्त्वचा की कोई भी कोशिका प्रपसू कोशिका के रूप में        

                             (1)प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary Parietal cell )  बाहर की तरफ

                            आकार में बड़ी, स्पष्ट केन्द्रक वाली , सघन जीव द्रव्य                             (2)प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका (Primary sporogenous cell ) भीतर की तरफ

प्रपसू कोशिका में परिनत विभाजन होता है और यह दो तरह की कोशिकाएं बनाती हैं       

 प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका गुरुबीजाणु मातृकोशिका की तरह कार्य)

प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary Parietal cell )  या तो अविभाजित रहती है या बार-बार विभाजित होकर भित्ति का निर्माण करती है                                                                       

गुरुबीजाणु मातृकोशिका(Megaspore Mother Cell) अर्द्ध सूत्री विभाजन(Meiotic Divison) द्वारा विभाजित होकर 4 अगुणित (n)गुरुबीजाणु(Megaspore) का निर्माण करता है  गुरुबीजाणुओं की संख्या

यह गुरुबीजाणु रैखिक क्रम(Linear order) में व्यवस्थित होते हैं . गुरुबीजाणु संख्या में चार होते है अत: इन्हें चतुष्क(Tetrad) कह सकते हैं इन चार गुरुबीजाणु में सबसे ऊपर निभाग की और वाला गुरुबीजाणु सक्रिय होता है यही मादा युग्मकोदभिद का निर्माण करता है शेष बचे तीन गुरुबीजाणु अप्ह्यासित (Degenerate) हो जाते हैं और इनका उपयोग सक्रिय गुरुबीजाणु द्वारा पोषण के लियें कर लियां जाता है . सक्रिय गुरुबीजाणु वृद्धि और परिवर्धन द्वारा  भ्रूणकोष(Embryo Sac) जिसे मादा युग्मकोदभिद(Female Gametophyte)  भी कहते का निर्माण करता है .

मादा युग्मकोदभिद अथवा भ्रूण कोष(Female gametophyte or Embryo Sac )

चार गुरुबीजाणु में सबसे ऊपर निभाग की और वाला गुरुबीजाणु सक्रिय होता है यही मादा युग्मकोदभिद का निर्माण करता है. यह मादा युग्मकोदभिद की प्रथम कोशिका होती है इस कोशिका को भ्रूणकोष मातृ कोशिका(Embryo sac mother cell ) भी कहते है यह अगुणित होती है

गुरुबीजाणु में परिवर्तन = (i) बीजाण्डका्य  से पोषण ग्रहण कर आकार में बड़ा

                      (ii)बड़ा होने के कारण बीजाण्डका्य में अधिक स्थान घेरता है

                      (iii) अनेक छोटी-छोटी रिक्तिकाएँ प्रकट जिनके संयुक्त होने से एक  बड़ी रिक्तिका का निर्माण

 

गुरूबीजाणु में विभाजन =इसके केन्द्रक में तीन बार मुक्त केन्द्रकीय सूत्री विभाजन करता है

विभाजन का परिणाम = 8 केन्द्रकों का निर्माण

·         प्रथम विभाजन = दो केन्द्रकों का निर्माण (रिक्तिका दीर्घीकरण के कारण दोनों केन्द्रकों में से एक –एक केन्द्रक विपरीत ध्रूव(निभाग व् बीजांड द्वार दो विपरीत सिरे ) की चले जाते हैं .

·         द्वितीय विभाजन = इस विभाजन में दोनों सिरों के केन्द्रक विभाजित होते हैं और दोनों सिरों पर दो-दो केन्द्रक प्राप्त होते हैं

·         तृतीय विभाजनयह द्वितीय विभाजन जैसा ही होता इसमें पहले से प्रत्येक सिरे पर बने दो –दो केन्द्रक विभाजित होते इस तरह अब प्रत्येक ध्रुव(सिरे) पर चार-चार केन्द्रक प्राप्त होते हैं इस प्रकार कुल 8 केन्द्रक बन जाते हैं

 

यह सब केन्द्रक एक सामान्य कोशिकाद्रव्य में होते हैं .दोनों और के ध्रूवों के चार केन्द्रकों में से एक एक केन्द्रक कोशिका के मध्य में आ जाता है और ध्रुवीय केन्द्रक कहलातें हैं दोनों अगुणित ध्रुवीय केन्द्रक मिलकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक (Secondary Nucleus)का निर्माण करते हैं इसे संलीन केन्द्रक(Definitive Nucleus) भी कहते हैं

बीजाण्ड में विभिन्न कोशिकाओं केन्द्रकों की स्थितियां

अधिकतर आवृतबीजी पादपों में भ्रूणकोष का परिवर्धन उपरोक्त तरीके से ही होता है इस प्रकार को एकबीजण्विक पोलीगोनाम प्रकार(Monosporic Polygonum type)  प्रकार कहते है

Poloygonam  प्रकार का भ्रूणकोष या स्त्री युग्मकोदभिद सात कोशिकीय तथा आठ केन्द्रकी होता है

द्वितीयक  केन्द्रक जो की द्विगुणित होता है बाद में कोशिका बन जाता है तथा बाकी 6 कोशिकाएं अगुणित होती हैं

भ्रूणकोष या स्त्रीयुग्मकोदभिद = 7 कोशिकीय

(1) बीजाण्ड द्वार की और = 3 कोशिकाएं --------------------(i) 1 अंड कोशिका(n)  

                                           (ii) 2 सहायक कोशिकाएं (n)                       

2.      मध्य भाग द्वितीयक केन्द्रक से बनी -------------------------------1 कोशिका (2n)

3.      निभाग की और = 3 कोशिकाएं ---------------------------------3 प्रतिमुखी कोशिकाएं (n)

                    कुल कोशिकाएं = 7

परिपक्व परिवर्धित स्त्री युग्मकोदभिद भ्रूण कोष में

अगुणित कोशिकाएं (n) की संख्या = 6

द्विगुणित कोशिकाओं की संख्या  = 1